Saturday, April 25, 2020

अध्याय - 7 एक साम्राज्य की राजधानी: विजयनगर (लगभग 14वीं से 16वीं शताब्दी तक)



कुछ स्मरणीय तथ्य-

1. विजयनगर साम्राज्य विजय का शहर कृष्णा व तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित था।

2. इसकी राजधानी विजयनगर (हंपी) के भग्नावशेष 1800 ई.में एक अभियंता तथा पुराविद् कर्नल कॉलिन मैकेंजी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे।

3. कर्नल मैकेंजी ईस्ट इंडिया कंपनी में 1815 में भारत के प्रथम सर्वेयर जनरल बनकर भारत आए थे।

4. विजयनगर की स्थापना दो भाइयों हरिहर और बुक्का द्वारा 1336 ई.में की गई थी।

5. विजयनगर साम्राज्य के शासक अपने आप को 'राय' कहते थे।

6. इसके प्रमुख शासक कृष्णदेव राय (1509 - 1529 ई.) थे।

7. विजयनगर पर संगम, सुलुव,तुलुव व अराविदु इन चार वंशों ने शासन किया।
(क) 1336-1485 ई. तक संगम वंश ने।
(ख) 1503 ई. तक सुलुव वंश ने।
(ग) 1503-1542 ई. तक तुलुव वंश ने।
(घ) 1542 ई. के बाद अराविदु वंश ने।

8. कृष्णदेव राय तुलुव वंश के थे।

9. विस्तार और सुदृढीकरण कृष्णदेव राय के शासन की मुख्य विशेषताएं थी।

10. कृष्णदेव राय ने शासनकाल के विषय में 'अमुक्तमल्यद' नामक तेलुगु भाषा में एक कृति लिखी है।

11. विजयनगर मसालों, वस्त्रों तथा रत्नों के बाजारों के लिए प्रसिद्ध था।

12. नायक सेना प्रमुख थे। उनके पास ससस्त्र समर्थक सैनिक होते थे।

13. अमर नायक सैनिक कमांडर थे।

14. विजयनगर में दो प्रसिद्ध मंदिर विरुपाक्ष मंदिर एवं विट्ठल मंदिर हैं।

15. हज़ार राम का मंदिर विजय नगर के राजकीय केंद्र में स्थित है।

16. दक्षिण के मंदिरों के ऊंचे द्वारों को गोपुरम कहा जाता है।

17. मंदिर परिसर, सभागार को मंडप कहा जाता है।

18. महानवमी डिब्बा एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार और 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है।

19. राजकीय केंद्र में सबसे सुंदर भवनों में एक है लोटस महल।

20. सबसे प्रभावशाली दो मंच सभामंडप और महानवमी डिब्बा।

21. कमलपुरम् जलाशय एक महत्वपूर्ण हौज़ है जिसका निर्माण 15वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ। इसे नहर के माध्यम से राजकीय केंद्र तक भी ले जाया जाता था।

22. 1976 ई. में हंपी को राष्ट्रीय महत्व के स्थल के तौर पर मान्यता मिली।

23. 1986 ई. में हंपी को यूनेस्को द्वारा विश्व पुरातत्व स्थल घोषित किया गया था।

24. जहां इतिहासकार विजयनगर साम्राज्य शब्द का इस्तेमाल करते हैं वहीं समकालीन लोगों ने उसे कर्नाटक साम्राज्यमु की संज्ञा दी।

25. विजयनगर साम्राज्य में आने वाले यात्री -

1. अब्दुर रज्जाक :- 15वीं शताब्दी में फारस के राजा द्वारा कालीकट (कोझिकोड) भेजा गया दुत अब्दुर रज्जाक किलेबंदी से प्रभावित था। वह विजय नगर के शासक देवराज द्वितीय के शासनकाल में भारत आया था।

2. निकोलो कॉन्ती :- इटली का व्यापारी था। 15वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी।

3. डोमिंगो पेस :-पुर्तगाली यात्री था। डोमिंगो पेस ने विजयनगर शहर का विवरण दिया है। उन्होंने शहर को रोम जितना बड़ा शहर बताया है। उसने खेत, बगीचे, बाजार, आवास, जल व्यवस्था, झीलों आदि का उल्लेख किया है।

4. फर्नाओ नूनिज :- वह एक पुर्तगाली यात्री, इतिहासकार और घोड़ों का व्यापारी था। वह 16 वीं शताब्दी में भारत आया।

5. दुआर्ते बरबोसा :- वह एक पुर्तगाली यात्री और खोजकर्ता था। वह सोलहवीं शताब्दी में भारत आया था।

6. अफ़ानासी निकितन :- भारत की यात्रा करने वाला पहला रुसी यात्री था। वह 15 वीं शताब्दी में भारत आया।

प्रश्न 1. विजय नगर के कमलपुरम जलाशय हौज़ का एक महत्व बताइए ।

उत्तर - इस हौज़ के पानी से न सिर्फ आसपास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के
जरिए "राजकीय केंद्र" तक भी ले जाया जाता था।

प्रश्न 2. "गोपुरम" व "मंडप" में कोई एक अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -
[ ] दक्षिण के मंदिरों के ऊंचे द्वारों को गोपुरम कहा जाता था । यह मंदिर के प्रवेश द्वार थे ।

[ ] मंदिर परिसर को मंडप कहा जाता था । यह मंदिर में बने सभागार थे।

प्रश्न 3. विजयनगर की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई ?

उत्तर - विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों हरिहर और बुक्का द्वारा 1336 ईस्वी में की गई थी।

प्रश्न 4. विजय नगर के शासकों ने कौन सी उपाधि धारण की ?

उत्तर - विजयनगर साम्राज्य के शासक अपने आप को राय कहते थे।

प्रश्न 5. अश्वपति,गजपति और नरपति में अंतर बताइए।

उत्तर - गजपति का शाब्दिक अर्थ हाथियों का स्वामी होता है । उड़ीसा के शासकों को गजपति कहा जाता था।

दक्कन के सुल्तानों को अश्वपति अथवा घोड़ों के स्वामी कहा जाता था ।

रायों को नरपति अथवा लोगों के स्वामी की संज्ञा दी गई।

प्रश्न 6. विजय नगर की राजधानी का नाम क्या था ? किसके नाम पर इसका नाम रखा गया ?

उत्तर :- विजय नगर या "विजय का शहर" एक शहर एवं एक साम्राज्य दोनों का ही नाम था । वर्तमान में इसके अवशेषों को हम्पी के नाम से जाना जाता है । इस नाम का आविर्भाव यहां की स्थानीय मातृदेवी पम्पादेवी के नाम पर हुआ था।

प्रश्न 7. राक्षसी तांगडी़ का युद्ध किनके बीच में हुआ और इनमें कौन विजयी रहा ?

उत्तर - राक्षसी तांगड़ी (तालीकोटा) का युद्ध 1565 ई. में विजय नगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षस तांगड़ी के युद्ध में उतरी जहां उसे बीजापुर, गोलकुंडा एवं अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं द्वारा शिकस्त मिली।

प्रश्न 8. कृष्णदेव राय के शासन की चारित्रिक विशेषता क्या थी ?

उत्तर - कृष्णदेव राय के शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार और सुदृढ़ीकरण था ।

इन्होंने शासनकाल के विषय में 'अमुक्तमल्यद' नामक तेलुगु भाषा में एक कृति लिखी।

प्रश्न 9. कृष्णदेव राय कौन से वंश से संबंद्ध थे ?

उत्तर - विजयनगर के सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा कृष्णदेव राय तुलुव वंश से संबंधित थे।

प्रश्न 10. यवन राज्य की स्थापना करने वाला विरुद् किसने और क्यों धारण किया ? कोई एक कारण दीजिए।

उत्तर - कृष्णदेव राय ने सल्तनतों में सत्ता के अनेक दावेदारों का समर्थन किया तथा "यवन राज्य की स्थापना करने वाला" विरुद धारण करके गौरव अनुभव
किया।

प्रश्न 11. विजयनगर साम्राज्य में जिलों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर :- विजयनगर साम्राज्य में जिलों को कोट्टम कहा जाता था।

प्रश्न 12. यवन कौन थे ?

उत्तर :- यवन संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग यूनानियों तथा उत्तर पश्चिम से उपमहाद्वीप में आने वाले अन्य लोगों के लिए किया जाता था।

प्रश्न 13. 'अमर 'शब्द से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर :- 'अमर' शब्द का आविर्भाव मान्यता अनुसार संस्कृत शब्द समर से हुआ है जिसका अर्थ है लड़ाई या युद्ध । यह फारसी शब्द अमीर से भी मिलता जुलता है जिसका अर्थ है - ऊंचे पद का कुलीन व्यक्ति।

प्रश्न 14. विजयनगर साम्राज्य में नायक किन्हें कहते थे ? वे कौन होते थे ?

उत्तर :- विजयनगर साम्राज्य में सेना प्रमुखों को नायक कहा जाता था। वे किलों पर नियंत्रण रखते थे। उनके पास सशस्त्र समर्थक होते थे । यह सेना प्रमुख एक जगह से दूसरी जगह तक भ्रमणशील रहते थे। यह तेलगु ,कन्नड़ भाषा बोलते थे।

प्रश्न 15. अमर नायक कौन थे ? उनके किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख करो।

उत्तर :- अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी । इस प्रणाली के कई तत्व दिल्ली सल्तनत की ईक्ता प्रणाली से लिए गए थे।

अमर नायक विजयनगर राज्य के सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे ।
कार्य :-
(1) वे किसानों, शिल्पियों तथा व्यापारियों से भू-राजस्व वसूलते थे ।

(2) वे राजस्व का कुछ हिस्सा निजी उपयोग और घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल की देखरेख के लिए अपने पास रख लेते थे।

(3) उनके सैनिक दल आवश्यकता के समय में राजा को सैनिक सहायता देते थे।

(4) अमर नायक राजा को साल में एक बार उपहार भेजा करते थे और अपने स्वामी भक्ति व्यक्त करने के लिए राजकीय दरबार में भेंट़ों के साथ उपस्थित हुआ करते थे।

प्रश्न 16. विजयनगर साम्राज्य के पतन के किन्हीं दो कारणों को लिखिए।

उत्तर :-
(1) विजयनगर राज्य में शासन प्राप्ति के लिए गृह युद्ध चलते रहते थे। इन युद्धों ने राज्य की शक्ति को कमजोर कर दिया।

(2) कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात विद्रोही नायकों तथा सेनापतियों द्वारा उसके उत्तराधिकारियों को चुनौती दी जाने लगी।

(3) 1565 में तालीकोटा के युद्ध में विजय नगर की सेनाएं बुरी तरह से पराजित हुई थी। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर को खूब लूटा और कुछ ही वर्षों में शहर उजड़ गया।

प्रश्न 17. कॉलिन मैकेंजी कौन था ?

उत्तर :- कॉलिन मैकेंजी ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत एक अधिकारी थे। वे एक अभियंता, पुरातत्व सर्वेक्षक एवं मानचित्रकार थे। हंपी के खंडहरों की खोज 1800 ई. में इन्होंने ही की थी। उन्होंने इस जगह का प्रथम सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया । 1815 में उन्हें भारत का पहला सर्वेयर जनरल बनाया गया और 1821 में अपनी मृत्यु तक वे इस पद पर बने रहे।


प्रश्न 18. पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है?

उत्तर :- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का राय नाम के दो भाइयों ने 1836 ईसवी में की थी। विजय नगर या "विजय का शहर" एक शहर एवं एक साम्राज्य दोनों का ही नाम था । 1565 ईस्वी में इस पर हमला कर इसे लूटा गया और बाद में यह उजड़ गया । यद्यपि सत्रहवीं अठारहवीं शताब्दियों तक यह पूर्णतया नष्ट हो गया था । लेकिन फिर भी कृष्णा तुंगभद्रा दोआब क्षेत्र के निवासियों की स्मृतियों में यह जिंदा रहा । उन्होंने इसे हम्पी नाम से स्मरण रखा।
हंपी के भग्नावशेषों के अध्ययन में पिछली दो शताब्दियों में अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है-

(1) 1800 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में एक अभियंता एवं पुराविद् कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने हंपी के खंडहरों की तरफ ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने इस स्थान का प्रथम सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया।

(2) मैकेंजी द्वारा प्राप्त आरंभिक जानकारियां विरुपाक्ष मंदिर तथा पम्पादेवी की पूजास्थानों के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थी।

(3) कालांतर में 1856 ई. से छाया चित्रकारों ने यहां की इमारतों के चित्र संकलित करने शुरू किए जिससे शोधकर्ता उनका अध्ययन कर सकें।

(4) 1836 ई. से ही अभिलेख कर्ताओं ने यहां तथा हंपी के दूसरे मंदिरों से अनेक दर्जन अभिलेखों को एकत्रित करना शुरू कर दिया ।

(5) हम्पी के भग्नावशेषों के इतिहास के निर्माण में विदेशी यात्रियों के वृत्तान्तों का भी अध्ययन किया गया।
इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के वृतान्तों और तेलुगू, तमिल, कन्नड़ और संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया।

(6) 1876 ई. में जे.एफ.फ्लीट ने पुरास्थल के मंदिर की दीवारों के अभिलेखों का अध्ययन किया। विरुपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदत्त सूचनाओं की पुष्टि की।


प्रश्न 19. विजयनगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था ?

उत्तर :- विजयनगर का क्षेत्र प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से था। अतः पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने का व्यापक प्रबंध किया जाता था जो कि निम्न प्रकार से था :-

(1) विजयनगर की जल आवश्यकताओं को मुख्य रूप से तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड से पूरा किया जाता था । यह नदी उत्तर पूर्व दिशा में बहती है।

(2) इस कुंड के आसपास ग्रेनाइट की पहाड़ियां हैं। यह पहाड़ियां शहर के चारों ओर करघनी का निर्माण करती सी प्रतीत होती हैं । इन पहाड़ियों से अनेक जल-धाराएं निकलकर नदी में जा मिलती हैं।

(3) लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बांध बनाकर भिन्न-भिन्न आकारों के हौज़ बनाए गए थे।

(4) ऐसे सबसे महत्वपूर्ण हौज़ों में एक का निर्माण 15वीं शताब्दी के शुरुआती सालों में हुआ जिसे आज कमलपुरम् जलाशय कहा जाता है। इस हौज़ के पानी से न सिर्फ आसपास के खेतों को सींचा जाता था अपितु इसे एक नहर के जरिए राजकीय केंद्र तक भी ले जाया गया था।

(5) सबसे महत्वपूर्ण जल संबंधी संरचनाओं में से एक हिरिया नहर को आज भी भग्नावशेषों के मध्य देखा जा सकता है ।

(6) इस नहर में तुंगभद्रा पर निर्मित बांध से पानी लाया जाता था तथा इसे "धार्मिक केंद्र" से "शहरी केन्द्र" को प्रथक करने वाली घाटी को सिंचित करने में इस्तेमाल किया जाता था। शायद इसका निर्माण संगम वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था।

प्रश्न 20. "अब्दुर रज्जाक विजयनगर की किलेबंदी से बहुत प्रभावित था।" कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :- विजयनगर शहर के विभिन्न भागों को विशाल किलेबंदी की दीवारों से घेरा गया था। अब्दुर रज्जाक विजयनगर शहर की किलेबंदी से काफी प्रभावित हुआ।

(1) उसके अनुसार, किलेबंदी की सात पंक्तियां थीं।

(2) इनसे न सिर्फ शहर को अपितु खेतों में प्रयुक्त आसपास के क्षेत्र और जंगलों को भी घेरा गया था।

(3) सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों तरफ बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ते थी।

(4) यह विशाल संरचना थोड़ी शुंडाकार थी। गारे अथवा जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु के निर्माण में कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया गया था।

(5) पत्थर के टुकड़े फनाकार थे जिसके कारण वे अपनी जगह पर टिके रहते थे। दीवारों के भीतर का हिस्सा मिट्टी और मलबे के मिश्रण से बना हुआ था।

(6) वर्गाकार और आयताकार बुर्ज बाहर की तरफ निकले हुए थे।

(7) इस किलेबंदी की सबसे खास बात यह थी कि इसमें खेतों को भी घेरा गया था।

(8) पहली, दूसरी तथा तीसरी दीवारों के मध्य जूते हुए खेत, बगीचे और घर थे।

(9) धार्मिक केंद्र और नगरीय केंद्र के मध्य एक कृषि क्षेत्र के साक्ष्य मिले हैं जिसमें तुंगभद्रा से नहर प्रणाली के जरिए पानी लाया जाता था।

(10) विजयनगर के राजाओं ने पूरे कृषि भू-भाग को बचाने के लिए एक ज्यादा महंगी और विस्तृत नीति को अपनाया।

(11) दूसरी किलेबंदी नगरीय केंद्र के आंतरिक हिस्से के चारों तरफ बनी हुई थी, व तीसरी से शासकीय केंद्र को घेरा गया था जिसमें महत्वपूर्ण इमारतों के हर एक समूह को अपनी ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था।

(12) दुर्ग में प्रवेश करने के लिए बहुत सुरक्षित प्रवेश द्वार थे जो शहर को प्रमुख सड़कों से जोड़ते थे।


प्रश्न 21. महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्व था ?

उत्तर :- विजयनगर की कुछ अति विशिष्ट संरचनाओं का नामकरण भवनों के आकार और साथ ही उनके कार्यों के आधार पर किया गया है। "राजा का भवन" अंत: क्षेत्र में सबसे विशाल संरचना है । इसके दो प्रभावशाली मंच सभामंडप व महानवमी डिब्बा हैं। महानवमी डिब्बा एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है इससे जुड़े अनुष्ठानों का महत्व निम्नलिखित था-

(1) इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान, संभवत सितंबर तथा अक्टूबर की शरद मासों में मनाए जाने वाले 10 दिन के हिंदू त्यौहार जिसे दशहरा (उत्तर भारत), दुर्गा पूजा (बंगाल में), नवरात्रि एवं महानवमी (प्रायद्वीपीय भारत में) नामों से जाना जाता है, के महानवमी के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे।

(2) इस अवसर पर विजयनगर शासक अपने रुतबे शक्ति तथा आधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।

(3) इस मौके पर होने वाले धर्मानुष्ठानों में मूर्ति की पूजा, राज्य के अश्व की पूजा और भैंसों तथा दूसरे जानवरों की बलि शामिल थी।

(4) नृत्य और कुश्ती प्रतिस्पर्धा से लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्राप्त होता था।

(5) सैनिकों की शोभायात्रा और प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा तथा उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट राजा की शक्ति और वैभव के संकेत थे।

(6) आखिरी दिन राजा अपनी तथा अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में निरीक्षण करता था। इस अवसर पर नायक राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेंट तथा नियत कर भी लाते थे।

(7) धार्मिक अनुष्ठानों से राजा व प्रजा की धार्मिक प्रवृत्ति की जानकारी मिलती है।


प्रश्न 22. विरुपाक्ष मंदिर मंदिर पर टिप्पणी लिखो।


उत्तर :- विरुपाक्ष मन्दिर
(1) विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण अनेक शताब्दियों में हुआ था । यद्यपि अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सबसे प्राचीन मंदिर नवीं- दसवीं शताब्दियों का था,विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के पश्चात इसे कहीं ज्यादा बड़ा किया गया था ।
(2) प्रमुख मंदिर के समक्ष बना मंडप कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनाया था । इसे बारीकी से उत्कीर्णीत स्तंभों से सजाया गया था । पूर्वी गोपुरम के निर्माण का संपूर्ण श्रेय भी उसी को दिया जाता है। इन परिवर्धनों का आशय था कि केंद्रीय देवालय पूरे परिसर के एक छोटे हिस्से तक सीमित रह गया था।

(3) मंदिर के सभागारों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से अनेक ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियां, संगीत, नृत्य तथा नाटकों के खास कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थी।

(4) अन्य सभागारों का इस्तेमाल देवी देवताओं के विवाह के मौके पर आनंद मनाने और कुछ अन्य का इस्तेमाल देवी देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था । इन मौकों पर खास मूर्तियों का इस्तेमाल होता था जो छोटे केंद्रीय देवालयों में स्थापित मूर्तियों से अलग होती थी।

(5) कुछ मान्यताओं के अनुसार स्थानीय मातृ देवी पम्पादेवी ने यहां की पहाड़ियों में विरुपाक्ष जो राज्य के संरक्षक देवता तथा शिव का एक रूप माने जाते हैं, से विवाह के लिए तप किया था । आज भी यह विवाह विरुपाक्ष मंदिर में हर वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है।

प्रश्न 23.विट्ठल मंदिर की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

विट्ठल मंदिर :-
यहां के मुख्य देवता विट्ठल थे जो प्राय: महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं। इस देवता की पूजा अर्चना को कर्नाटक में शुरू करना उन ज़रियों का द्योतक है जिनसे एक साम्राज्यिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के राजाओं ने भिन्न-भिन्न परंपराओं को आत्मसात किया । अन्य मंदिरों की भांति ही इस मंदिर में भी अनेक सभागार और रथ के आकार का एक अद्वितीय मंदिर भी है।


प्रश्न 24. राजकीय केंद्र में स्थित कमल महल का संक्षिप्त विवरण दीजिए।

उत्तर;- राजकीय केंद्र के सबसे अधिक सुंदर भवनों एक लोटस (कमल) महल है, इसे यह नाम उन्नीसवीं सदी के अंग्रेजी यात्रियों ने दिया था। यद्यपि यह नाम निश्चित रूप से दिलचस्प है परंतु इतिहासकार इस विषय में निश्चित नहीं है कि यह भवन किस काम के लिए बना था। एक मत के अनुसार यह परिषदीय सदन था जहां शासक अपने परामर्शदाताओं से मिलता था।

प्रश्न 25. राजकीय केंद्र में स्थित हज़ार राम मंदिर की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :- यद्यपि अधिकतर मंदिर धार्मिक केंद्र में स्थित थे परंतु राजकीय केंद्र में भी अनेक मंदिर थे । इनमें से एक अत्यधिक दर्शनीय को हज़ार राम मंदिर कहते हैं।

(1) शायद इसका इस्तेमाल सिर्फ राजा और उनके परिवार द्वारा किया जाता था।

(2) मध्य के देवस्थल की प्रतिमा अब नहीं है परंतु दीवारों पर निर्मित पटल मूर्तियां सुरक्षित हैं।

(3)इनमें मंदिर की अंदर की दीवारों पर उत्कीर्णित रामायण से लिए गए कुछ दृश्यांश शामिल हैं।


प्रश्न 26. विजयनगर के शासकों के देवताओं से गहन संबंधों के संकेतक के उदाहरण दीजिए।

उत्तर :-
(1) राजकीय आदेशों पर कन्नड लिपि में "श्री विरुपाक्ष" शब्द अंकित होता था।
(2) शासक देवताओं से अपने गहन संबंधों के संकेतक के रूप में विरुद् 'हिंदू सुरतराणा' का प्रयोग करते थे। इसका शाब्दिक अर्थ था हिंदू सुल्तान।


Monday, April 13, 2020

अध्याय - 6 भक्ति सूफी परंपराएं (8 वीं से 18 वीं सदी तक)

प्रश्न 1.किस प्रकार की धार्मिक इमारतें किसी विशेष धार्मिक विश्वासों और आचरणों का प्रतीक मानी जाती है ?

उत्तर :- स्तूप, विहार और मंदिर धार्मिक विश्वासों और आचरणों का प्रतीक माने जाते हैं; जैसे स्तूप बौद्ध धर्म के प्रतीक तथा मंदिर हिंदू धर्म के प्रतीक।

प्रश्न 2. 8वीं से 18 वीं सदी तक की भक्ति और सूफी परंपराओं को जानने के लिए किन्हीं दो स्रोतों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :-
(1) इमारतों, मूर्तिकला, चित्रकला से हमें धार्मिक विश्वासों और आचरणों के विषय में पता चलता है ।

(2) कई धार्मिक विश्वासों का पुनर्निर्माण साहित्यिक परंपरा जैसे पुराणों, संत कवियों की रचनाओं, उनकी जीवनियों द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 3.. "मणिक्वचक्कार" की 12 वीं शताब्दी की कांस्य मूर्ति से क्या जानकारी प्राप्त होती है ?

उत्तर :- इस मूर्ति से यह अनुमान लगाया जाता है कि लोग शिव के अनुयाई थे और तमिल में भक्ति गान की रचना करते थे।

प्रश्न 4. बौद्ध देवी, मारिची की मूर्ति (लगभग 10 वीं शताब्दी, बिहार) किस प्रक्रिया का उदाहरण है ?

उत्तर :- बौद्ध देवी मारिची की मूर्ति विभिन्न धार्मिक विश्वासों और क्रियाकलापों के एकीकरण की प्रक्रिया का उदाहरण है।

प्रश्न 5. जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ लिखकर उनकी बहन तथा भाई का नाम लिखिए।

उत्तर :- पुरी, उड़ीसा में मुख्य देवता को 12वीं शताब्दी तक आते-आते जगन्नाथ (शाब्दिक अर्थ - संपूर्ण विश्व का स्वामी) विष्णु के स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किया गया। उनकी बहन का नाम सुभद्रा तथा भाई का नाम बलराम है।

प्रश्न 6. बासवन्ना कौन थे ? उन्होंने किस भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया ?
अथवा
प्रश्न - लिंगायत कौन थे ? लिंगायतों ने किन विचारों का विरोध किया ?

उत्तर :- 12 वीं सदी में कर्नाटक में एक नए आंदोलन का उद्भव हुआ जिसका नेतृत्व बासवन्ना (1106- 68) नामक एक ब्राह्मण ने किया। बासवन्ना पहले जैन मत को मानते थे और चालूक्य राजा के दरबार में मंत्री थे।

(क) लिंगायत - बसवन्ना के अनुयाई वीरशैव (शिव के वीर) एवं लिंगायत (लिंग धारण करने वाले) कहलाए।
वे शिव की उपासना लिंग के रूप में करते थे।

(ख) लिंगायतों ने ब्राह्मणीय पद्धत्ति के निम्न दो विचारों का विरोध किया -
(i) लिंगायतों ने जाति की अवधारणा और कुछ समुदायों के दूषित होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का विरोध किया।
(ii) उन्होंने पुनर्जन्म के सिद्धांत पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया।

प्रश्न 7. लिंगायतों के किसी एक धार्मिक विश्वास एवं व्यवहार का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- लिंगायतों का यकीन है कि वे मृत्योपरांत भक्त शिव में लीन हो जाएंगे और इस जगत में पुन: नहीं लौटेंगे ।
--धर्मशास्त्र में संकलित श्राद्ध संस्कार का भी वे कभी पालन नहीं करते।
--वह अपने मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते हैं।

प्रश्न 8. अलवार और नयनार कौन थे ? वे किन भाषाओं में गाया करते थे ? उनको चोल राजाओं द्वारा प्राप्त समर्थन का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :-
(क) अलवार विष्णु भक्त और नयनार शिव भक्त थे।

(ख) वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए तमिल भाषा में अपने इष्ट की स्तुति में भजन गाया करते थे।
(ग) चोल (नवीं से 13वीं शताब्दी) राजाओं ने ब्राह्मणीय तथा भक्ति परंपरा को समर्थन दिया और शिव और विष्णु के मंदिरों के निर्माण के लिए भूमि अनुदान दिए।

तेंजावुर और चिदम्बरम और गंगेकोंडचोलपुरम् के भव्य शिव मंदिर चोल राजाओं की सहायता से निर्मित हुए। इस काल में कांस्य में ढ़ाली गई शिव की प्रतिमाओं का भी निर्माण किया गया। स्पष्ट है कि नयनार संतों का दर्शन शिल्पकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।

प्रश्न 9.अलवार और नयनार संत परंपरा में स्त्री भक्तों पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :- अलवार और नयनार संत परंपरा में स्त्रियों की मौजूदगी एक बड़ी खासियत थी। इसमें अंडाल और करईइक्काल अम्मइयार प्रमुख स्त्री भक्त हुई हैं।

अलवार भक्त 'अंडाल 'के भक्ति गीत व्यापक स्तर पर गाए जाते थे। वह स्वयं को विष्णु की प्रेयशी मानकर अपनी प्रेम भावना को छन्दों में व्यक्त करती थी।

'कराइक्काल अम्मइयार' ने घोर तपस्या की। नयनार परंपरा में उसकी रचनाओं को सुरक्षित रखा गया।

यद्यपि इन स्त्रियों ने सामाजिक कर्तव्यों का परित्याग किया परंतु वह भिक्षुणी समुदाय की सदस्य नहीं बनी। फिर भी इनकी जीवन पद्धत्ती और रचनाओं ने पितृसत्तात्मक आदर्शों को चुनौती दी।

प्रश्न 10. अलवार और नयनार संतों का जाति प्रथा के प्रति दृष्टिकोण का उल्लेख करो।

उत्तर :-
(1) कुछ इतिहासकारों का विचार है कि अलवार और नयनार संतों ने जाति प्रथा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए अपनी आवाज़ उठाई।

(2) क्योंकि भक्ति संत विभिन्न समुदायों से थे जैसे- ब्राह्मण, किसान, शिल्पकार और कुछ तो उन जातियों से आए थे जिन्हें "अस्पृश्य" माना जाता था।

प्रश्न 11. अलवर संतो के मुख्य काव्य संकलन का नाम लिखिए।

उत्तर :- "नलयिरादिव्यप्रबंधम्" को तमिल वेद भी बताया गया है।

प्रश्न 12. इतिहासकर भक्ति परंपरा को कितने वर्गों में बांटते हैं ?

उत्तर :- इतिहासकार भक्ति परंपरा को दो मुख्य वर्गों में बांटते हैं -

(1) सगुण :- शिव, विष्णु तथा उनके अवतार व देवियों की आराधना की जाती है।

(2) निर्गुण :- अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना की जाती है।

सगुण भक्ति परंपरा के संत
(क) राम भक्ति शाखा - तुलसीदास
(ख) कृष्ण भक्ति शाखा - सूरदास, मीराबाई

निर्गुण भक्ति परंपरा के संत :-
(क) ज्ञान मार्गी शाखा - कबीर
(ख)प्रेम मार्गी शाखा - जायसी


प्रश्न 13. बाबा फरीद ने किस भाषा में काव्य रचना की और वह है किस में संकलित है ?

उत्तर :- बाबा फरीद ने क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की और वह गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है।

प्रश्न 14. पद्मावत के रचयिता कौन थे?

उत्तर :- पद्मावत के रचयिता मलिक मोहम्मद जायसी थे। "पद्मावत" एक प्रेमाख्यान है जो पद्मिनी तथा चित्तौड़ के शासक रतनसेन की प्रेम कथा का वर्णन करता है।

प्रश्न 15. कबीर को भक्ति मार्ग दिखाने वाले कौन थे ?

उत्तर :- उनके गुरु रामानंद ।

प्रश्न 16.खालसा पंथ का क्या अर्थ है ?

उत्तर :- खालसा पंथ( पवित्रों की सेना) की नींव गुरु गोविंद सिंह जी ने रखी । उन्होंने खालसा के लिए पांच प्रतीक निर्धारित किए - 1.बिना कटे केश 2. कृपाण 3. कच्छ 4.कंघा 5. लोहे का कड़ा ।

प्रश्न 17. आदि ग्रंथ साहिब क्या था ?

उत्तर :- पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने बाबा गुरु नानक और उनके चार उत्तराधिकारियों बाबा फरीद, रविदास, और कबीर की बानी को आदि ग्रंथ साहिब में संकलित किया। इन को गुरबानी कहा जाता है और यह अनेक भाषाओं में रचे गए।

प्रश्न 18. गुरु ग्रंथ साहिब क्या है ?

उत्तर :- आदि ग्रंथ साहिब, जिसको गुरबानी भी कहा जाता है, में सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने नवें गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को भी इसमें शामिल किया और इस ग्रंथ को गुरु ग्रंथ साहिब कहा गया।

प्रश्न 19. कबीर की बानी किन पारिपाटियों में संकलित है ?

उत्तर :- कबीर की बानी निम्नलिखित परीपाटिर्यों में संकलित है :-
(1) कबीर बीजक कबीर पंथिओं द्वारा वाराणसी तथा उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर संरक्षित है।
(2) कबीर ग्रंथावली का संबंध राजस्थान के दादू पंथियों से है ।
(3) कबीर के कई पद आदि ग्रंथ साहिब में संकलित है ।

प्रश्न 20 कबीर की उलटबांसी रचनाएं क्या हैं ?

उत्तर :- उलटबांसी का अर्थ है उल्टी कही गईं उक्तियां। ये इस प्रकार से लिखी गई हैं कि उनके अर्थ को उलट दिया गया है। ये रचनाएं परम सत्य के स्वरूप को शब्दों में व्यक्त करने की कठिनाई को दर्शाती हैं।

प्रश्न 21. कबीर की मुख्य शिक्षाओं का उल्लेख करो। कबीर द्वारा वर्णित परम सत्य को बताइए।
उत्तर :-
(1) कबीर ने आध्यात्मिकता पर बल दिया।
(2) उन्होंने हिंदू और मुसलमान दोनों की रुढ़ियों की कटु आलोचना की।
(3) कबीर ने ईश्वर की एकता पर बल दिया।
(4) मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा, और अन्य आडंबरों की आलोचना की।
(5) सती प्रथा और पर्दा प्रथा का विरोध किया।
(6) अच्छे कर्मों का फल अवश्य मिलता है।
(7) उन्होंने परमात्मा को निराकार बताया है।
(8) उनके अनुसार भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त हो सकता है।

कबीर ने परम सत्य को वर्णित करने के लिए कई परीपाटियों का सहारा लिया। इस्लामी दर्शन की भांति वे इस सत्य को खुदा, अल्लाह, हजरत तथा पीर कहते हैं। वेदांत दर्शन से प्रभावित होकर वे सत्य को अलख (अदृश्य), ब्राह्मन्, निराकार व आत्मन कहकर भी संबोधित करते हैं।

प्रश्न 22. मातृगृहता क्या है ?
उत्तर :- मातृगृहता वह परिपाटी है जहां स्त्रियां विवाह के बाद अपने मायके में ही अपनी संतान के साथ रहती हैं और उनके पति उनके साथ आकर रह सकते हैं।

प्रश्न 23. भक्ति आंदोलन के उदय के क्या कारण थे ?

उत्तर :-
(1) वैष्णव मत का प्रभाव
(2) हिंदू धर्म की बुराइयां
(3) इस्लाम के फैलने का भय
(4) सूफी मत का प्रभाव
(5) महान् भक्त संतो का उदय

प्रश्न 24. भक्ति आंदोलन का क्या अर्थ है ?

उत्तर :- कई हिंदू संतो और सुधारकों ने धार्मिक सुधार लाने के लिए आंदोलन चलाए जो भक्ति आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अपनी भक्ति को दर्शाने के लिए मंदिरों में देवताओं के समक्ष उनकी स्तुति में गीतों के माध्यम से लीन हो जाते थे।


प्रश्न 25. मीराबाई के गुरु कौन थे ?

उत्तर :- मीराबाई भक्ति परंपरा की सबसे सुप्रसिद्ध कवियत्री हैं। मीराबाई के गुरु रैदास (रविदास) नीची जाति के थे। मीराबाई कृष्ण के बांसुरी बजाते हुए रुप को पूजती थी। उन्होंने विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को अपना एकमात्र पति स्वीकार किया।

प्रश्न 26. इस्लाम धर्म की उन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए जिनकी मदद से यह धर्म समूचे उपमहाद्वीप में फैल गया।

उत्तर :- इस्लाम के आगमन के पश्चात हुए बदलाव का प्रभाव उपमहाद्वीप के शासकों सहित दूरदराज के सामाजिक समुदायों जैसे किसान, शिल्पी, योद्धा एवं व्यापारी तक फैल गया।
इस्लाम धर्म कबूल करने वालोें को ये पांच मुख्य बातें माननी पड़ती थी :-
(1)अल्लाह एकमात्र ईश्वर है और पैगंबर मोहम्मद उनके दूत हैं ।
(2) दिन में 5 बार नमाज पढ़ी जानी चाहिए।
(3) खैरात (जकात) बांटनी चाहिए ।
(4) रमजान के महीने में रोजा रखना चाहिए।
(5) हज़ के लिए मक्का जाना चाहिए।


प्रश्न 27. "चिश्ती" उपासना पद्धति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर - (1) सूफी संतों की दरगाह पर जियारत (प्रार्थना) करना पूरे इस्लाम में प्रचलित है।

इस अवसर पर संत के आध्यात्मिक आशीर्वाद अर्थात बरकत की कामना की जाती है ।

(2) नाच, कव्वाली जियारत के महत्वपूर्ण अंग हैं। इनके द्वारा अलौकिक आनंद की भावना को जगाया जाता है।

प्रश्न 28. मुस्लिम संतों की दरगाह पर भक्त लोग क्यों आते हैं ? कोई एक कारण दीजिए ।

उत्तर - मुस्लिम संतों की दरगाह पर लोग जियारत करने जाते थे।
लोग आध्यात्मिक और ऐहिक कामनाओं की पूर्ति के लिए उनका आशीर्वाद लेने जाते थे।

प्रश्न 29. उलमा कौन थे?

उत्तर- उलमा इस्लाम धर्म के ज्ञाता थे। इस परिपाटी के संरक्षक होने के कारण वे धार्मिक, कानूनी और अध्य्यन संबंधित उतरदायित्व निभाते थे।
सैद्धांतिक रुप से मुसलमान शासकों को उलमा के मार्गदर्शन पर चलना होता था। उलमा से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे शासन में शरिया का अमल सुनिश्चित करवाएंगे।


प्रश्न 30. सूफीवाद से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर :- इस्लाम के उद्भव के पश्चात खलीफा की बहती शक्तियों के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोग रहस्यवाद एवं वैराग्य की ओर झुक गए जिन्हें सूफी कहा जाता था। इनकी विचारधारा सूफीवाद कहलाई।

प्रश्न 31. अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी में किस सूफी संत की दरगाह है ?

उत्तर :- अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी में बाबा फरीद के वंशज शेख सलीम चिश्ती की दरगाह हैयह दरगाह चिश्तियों और मुगल राज्य के घनिष्ट संबंधों का प्रतीक थी

प्रश्न 32,. वली किसे कहते हैं ?

उत्तर :- शेख को वली के रूप में आदर करने की प्रथा प्रचलित हुई। वली से अभिप्राय है ईश्वर का मित्र वह सूफी जो अल्लाह के निकट होता था और उनसे मिली बरकत से करामात करने की शक्ति रखता था।

प्रश्न 33. सूफी परंपरा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए विभिन्न स्रोतों का वर्णन करो।

उत्तर सूफी खानकाहों के इर्द-गिर्द कई ग्रंथों की रचना हुई जिनमें सम्मिलित है --
1. सूफी आचारों और विचारों पर निबंध पुस्तिका कश्फ-उल- महजूब इस विद्या का एक उदाहरण है। यह किताब अली बिन उस्मान हुजविरी द्वारा लिखी गई।

2. मुलफुजात ( सूफी संतों की बातचीत ) मुलफुजात पर एक आरंभिक ग्रंथ फवाइद-अल-फुआद है। यह शेख निजामुद्दीन औलिया के वार्तालाप पर आधारित एक संग्रह है जिसका संकलन विख्यात फारसी कवि अमीर हसन शिजज़ी देहलवी द्वारा किया गया।

3. मक्तुबात (लिखे हुए पत्रों का संकलन) ये वे खत थे जो सूफी संतों द्वारा अपने अनुयायियों और सहयोगियों को लिखे गए।

4. तज़किरा ( सूफी संतों की जीवनियों का स्मरण ):

प्रश्न 34. शंकरदेव पर एक टिप्पणी लिखो।

उत्तर :- 15 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में असम में शंकरदेव वैष्णव धर्म के प्रमुख प्रचारक के रूप में उभरे। उनके उपदेशों को भगवती धर्म कहकर संबोधित किया जाता है । क्योंकि यह भगवत गीता और भागवत पुराण पर आधारित था।
यह उपदेश सर्वोच्च देवता विष्णु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव पर केंद्रित थे। शंकर देव ने भक्ति के लिए नाम कीर्तन और श्रद्धावान भक्तों के सत्संग में ईश्वर के नाम के उच्चारण पर बल दिया।

प्रश्न 35. शरिया का अर्थ बताइए।

उत्तर शरिया मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून है। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है। हदीस का अर्थ है पैगंबर साहब से जुड़ी परंपराएंं जिनके अंतर्गत उनके स्मृत शब्द और क्रियाकलाप भी आते हैं।

प्रश्न 36. बा--शरिया और बे-शरिया में अंतर स्पष्ट करो।

उत्तर :-
(i) बे-शरिया शरिया की अवहेलना करते थे और
बा-शरिया शरिया का पालन करते थे।
(ii) बे-शरिया खानकाह का तिरस्कार करके रहस्यवादी फकीरी का जीवन व्यतीत करते थे जबकि बा-शरिया एक संगठित समुदाय खानकाह के इर्द-गिर्द खुद को स्थापित करते थे।

प्रश्न 37. सूफी " सिलसिला " का क्या अर्थ है ?

उत्तर :- सिलसिला का शाब्दिक अर्थ है जंजीर जो शेख तथा मुरीद के मध्य एक निरंतर रिश्ते की द्योतक है। इसकी पहली अटूट पड़ी पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी है। इस कड़ी के द्वारा आध्यात्मिक ताकत तथा आशीर्वाद मुरीद तक पहुंचता था। दीक्षा के खास अनुष्ठान विकसित किए गए जिसमें दीक्षित को वफादारी का वचन देना होता था तथा सिर मुंडां कर थेगड़ी लगे कपड़े धारण करने पड़ते थे। सबसे प्रसिद्ध सूफी सिलसिला चिश्ती सिलसिला था।

प्रश्न 38. जहांआरा कौन थी ? उनकी रचना का नाम लिखो।


उत्तर :- शहजादी जहांआरा मुगल सम्राट शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी थी। जहांआरा ने ही चांदनी चौक की रूपरेखा बनाई थी।
जहांआरा द्वारा रचित पुस्तक का नाम शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी मुनिस-अल-अखाह (अर्थात, आत्मा का विश्वास) है।

प्रश्न 39. पांच प्रसिद्ध चिश्ती संतों के नाम बताओ जिनकी दरगाह पर लोग अपनी आस्था प्रकट करते हैं। इनमें से सबसे अधिक पूजनीय कौन है ?

उत्तर :- पांच प्रसिद्ध चिश्ती संत -
(1) शेख मुइनुद्दीन चिश्ती
(2) ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
(3) शेख फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर
(4) शेख निजामुद्दीन औलिया
(5) शेख नसीरुद्दीन चिराग-ए-दिल्ली।

इनमें से सबसे अधिक पूजनीय दरगाह शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की है जिन्हें गरीब नवाज कहा जाता है।


Wednesday, April 8, 2020

अध्याय 5 - यात्रियों के नजरिए - समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 1. "इतिहास में कई महिलाओं और पुरुषों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में यात्राएं की है।" कथन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - लोग निम्न उद्देश्यों से यात्रा करते थे -
1. काम की खोज में,
2. प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए,
3. सैनिक, व्यापारी, पुरोहित एवं तीर्थयात्री के रूप में
4. या फिर साहस की भावनाओं से प्रेरित होकर ।

प्रश्न 2. 10वीं से 17वीं शताब्दी तक तीन प्रमुख यात्री भारत आए । वे कौन थे ?

उत्तर :-

1. अल-बिरूनी - अल-बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान के एक महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र ख्वारिज्म शहर में 973 ईसवी में हुआ था। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई फारसी हिब्रू और संस्कृत भाषा शामिल है।
वह 11 वीं शताब्दी में भारत आया था।

2.इब्नबतूता :- अफ्रीकी देश मोरक्को के इस यात्री का जन्म तैंजियर में हुआ था। उसका परिवार इस्लामिक कानून अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था। वह 14वीं शताब्दी में भारत आया।

3.फ्रांस्वा बर्नियर :- फ्रांन्स का रहने वाला फ्रांस्वा बर्नियर एक डाक्टर, राजनीतिक, दार्शनिक, व एक इतिहासकार था। वह 1656 से 1668 तक भारत में 12 साल तक रहा। उसने सम्राट शाहजहां के जेष्ठ पुत्र दारा शिकोह के डॉक्टर के रूप में, बाद में मुगल दरबार के एक आर्मीनियाई दानिश खान के साथ एक बुद्धिजीवी व वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया।
बर्नियर की पुस्तक का नाम Travels In Mughal Empire है। यह पुस्तक फ्रेंच भाषा में लिखी गई है।

प्रश्न 4. अल बिरूनी द्वारा लिखित पुस्तक किताब-उल- हिंद पर टिप्पणी लिखो।

उत्तर -
(i) "किताब-उल-हिंद", अल बिरूनी द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया एक विस्तृत ग्रंथ है।
(ii) इसकी भाषा स्पष्ट और सरल है।
(iii) यह पुस्तक 80 अध्यायों में विभाजित है।
(iv) इसमें धर्म एवं दर्शन, खगोल- विज्ञान, कीमिया, त्योहारों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं, सामाजिक - जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया है।
(v) अल बिरूनी ने इसमें एक विशिष्ट शैली का इस्तेमाल किया है। प्रत्येक अध्याय एक प्रश्न से शुरू होता था, फिर संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन और आखिर में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलना।


प्रश्न 5. भारत संबंधी विवरण को समझने में अलबरूनी के समक्ष कौन सी बाधाएं थी ?

उत्तर:- अल - बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित खवारिज में 973 ईसवी में हुआ था। ख्वारिज्म शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था। वह कई भाषाएं जानता था जिनमें सीरियाई, फारसी, हिब्रू और संस्कृत शामिल थी ।

अल बिरूनी अपने लिए निर्धारित उद्देश्य में निहित समस्याओं से परिचित था।उसने कई "अवरोधों" की चर्चा की है जो उसकी समझ में बाधक थे।

(1) इनमें से प्रथम अवरोध भाषा थी। उसके अनुसार संस्कृत, अरबी तथा फारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों अौर सिद्धांतों को एक भाषा से दूसरी में अनुवादित करना सरल नहीं था।

(2) उसके द्वारा चिन्हित दूसरा अवरोध धार्मिक अवस्था और प्रथा में भिन्नता थी।

(3) उसके अनुसार तीसरा अवरोध अभिमान था। यहां रोचक बात यह है कि इन समस्याओं की जानकारी होने पर भी, अल-बिरूनी लगभग पूरी तरह से ब्राह्मणों द्वारा रचित कृतियों पर आश्रित रहा। उसने भारतीय समाज को समझने के लिए अक्सर वेदों, पुराणों, भगवदगीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति आदि से अंश उद्धृत किए हैं।

प्रश्न 6. "अल- बिरूनी ने फारस की जाति व्यवस्था की तुलना भारत की वर्ण व्यवस्था से की है।" स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :- .अल- बिरूनी ने लिखा है कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी।
(i) घुड़सवार तथा शासक वर्ग
(ii) चिकित्सक, अनुष्ठानिक पुरोहित और भिक्षु
(iii) खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक
(iv) किसान तथा शिल्पकार
अल-बिरूनी ने फारस की जाति व्यवस्था की तुलना भारत की वर्ण व्यवस्था से की है जिसमें चार वर्ण थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

प्रश्न 7. अल-बिरूनी ने भारतीय वर्ण व्यवस्था की व्याख्या किस प्रकार की है ?

उत्तर :- अल-बिरूनी के अनुसार भारतीय वर्ण व्यवस्था में:-
(i) सबसे ऊंची जाति ब्राह्मणों की है जिनके बारे में हिंदुओं के गृंथ हमें बताते हैं कि वे ब्रह्मा के सिर से पैदा हुए थे और क्योंकि ब्रह्म प्रकृति नामक शक्ति का ही दूसरा नाम है, तथा सिर शरीर का सबसे ऊपरी हिस्सा है। अतः ब्राह्मण पूरी प्रजाति के सबसे चुनिंदा हिस्सा हैं। इसी कारण से हिंदू उन्हें मानव जाति में सबसे अच्छा मानते हैं।

(ii) ब्राह्मण के बाद क्षत्रिय आते हैं जिनका जन्म शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा के कंधों और हाथों से हुआ है। वह लगभग ब्राह्मणों के समकक्ष हैं।

(iii) उनके बाद वैश्य आते हैं जिनका सर्जन ब्रह्मा की जंघाओं से हुआ था।

(iv) शुद्र सर्जन ब्रह्मा के पैरों से हुआ था।

प्रश्न 8. अल-बिरूनी ने जाति प्रथा के संबंध में अपवित्रता की मान्यता को क्यों नहीं स्वीकार किया ?

उत्तर :-
(i) उसके अनुसार प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है।
(ii) सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है। अलबरूनी बल देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होता।
उसके हिसाब से जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के खिलाफ थी।

प्रश्न 9. उदाहरण देकर दर्शाइए कि भारतीय सूती वस्त्रों की मांग पश्चिम और दक्षिण एशिया में बहुत अधिक क्यों थी?

उत्तर :- इब्नबतूता के अनुसार, भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया, दोनों में बहुत मांग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों विशेष रूप से सूती कपड़ा, महीन मखमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी। इब्नबतूता हमें बताता है कि महीना मखमल की कई किस्में इतनी अधिक महंगी थी कि उन्हें अमीर वर्ग तथा बहुत धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे।

प्रश्न 10. इब्नबतूता का नारी दासों के बारे में कोई एक विचार लिखिए।

उत्तर:-     इब्नबतूता के अनुसार - दासियों को सफाई कर्मचारी के रूप में रखा जाता था और वे बिना हिचक घरों में घुस जाती थी ।
दासियां गुप्त सूचनाओं को राज्य तक पहुंचाने का काम करती थी।
सुल्तान अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था ।
सुल्तान की सेवा में नियुक्त कुछ दासियां संगीत और गायन में निपुण थी।

प्रश्न 11. बर्नियर ने मुगल शासन के अंतर्गत शिल्पकारों के जटिल सामाजिक वास्तविकता का वर्णन किस प्रकार किया है ? कोई एक कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :- बर्नियर कहता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों को बेहतर बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था, क्योंकि उनके मुनाफे का अधिग्रहण राज्य द्वारा कर लिया जाता था। इसलिए उत्पादन के स्तर में निरंतर कमी आ रही थी। दूसरी ओर वह कहता है कि पूरे विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएं भारत में आती थी, क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था।

प्रश्न 12. प्रसिद्ध यूरोपीय लेखक दुआर्ते बरबोस का यात्रा वृतांत किस के संदर्भ में है?

उत्तर ;- प्रसिद्ध यूरोपीय लेखक दुआर्ते बरबोस का यात्रा वृतांत दक्षिण भारत में व्यापार तथा समाज का एक विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 13. इब्न बतूता द्वारा वर्णित दो प्रकार की डाक व्यवस्था के नाम बताइए।

उत्तर :- इब्नबतूता ने दो प्रकार की डाक व्यवस्था का वर्णन किया है -
( 1)अश्व डाक व्यवस्था जिसे उलुक कहा जाता था।
(2) पैदल डाक व्यवस्था जिसे दावा कहा जाता था।

प्रश्न 14. मार्को पोलो कौन था?

उतर :- मार्कोपोलो तेरहवीं शताब्दी में इटली से आया एक यात्री था।

प्रश्न 15. बर्नियर का शिविर नगर से क्या अभिप्राय था ?

उत्तर :- बर्नियर मुगलकालीन शहरों को "शिविर नगर" कहता है जिससे उसका मतलब उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व के लिए राजकीय शिविर पर आश्रित थे। उसका मानना था कि ये राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे इसके कहीं और चले जाने के बाद तीव्रता से पतनोन्मुख हो जाते थे।

प्रश्न 16. इब्नबतूता ने भारत आने से पूर्व किन-किन देशों की यात्राएं की?

उतर :- इब्नबतूता ने भारत आने से पूर्व मक्का की तीर्थ यात्रा की । वह सीरिया, इराक, यमन, ओमान, पूर्वी अफ्रीका के व्यापारिक बंदरगाहों पर भी गया।

प्रश्न 17. 17वीं शताब्दी में कौन सा यूरोपीय यात्री भारतीय उपमहाद्वीप में आया था ?
उत्तर - फ्रांस्वा बर्नियर ।

प्रश्न 18. रिहला के अनुसार उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा शहर..... दिल्ली ....... था ।


प्रश्न 19. इब्नबतूता के अनुसार यात्राएं करना अधिक असुरक्षित क्यों था ?
उत्तर :- इब्नबतूता ने अनेक बार डाकुओं के झूंड द्वारा किए गए हमले झेले थे। यहां तक कि वह अपने मित्रों के साथ कारवां में चलना पसंद करता था, किंतु इससे भी राजमार्गों के डाकुओं को रोका नहीं जा सका। मुल्तान से दिल्ली की यात्रा के दौरान उसके कारवां पर हमला हुआ और उसके कई मित्र यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस कारण वह यात्राओं को असुरक्षित समझता था।


प्रश्न 20. "रिहला" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :- "रिहला" इब्नबतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत है। यह 14वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के बारे में प्रचुर एवं दिलचस्प जानकारियां देता है।
इसमें इब्नबतूता ने भारतीय शहरों का जीवंत विवरण किया है जैसे -- भीड़-भाड़ वाली सड़कें, चमक-दमक वाले बाजार, बाजार आर्थिक गतिविधियों के केंद्र, डाक व्यवस्था, दिल्ली एवं दौलताबाद, पान और नारियल ने इब्नबतूता को आश्चर्यचकित किया। उसने दास दासियों के विषय में भी लिखा।

प्रश्न 21 इब्नबतूता ने नारियल एवं पान का वर्णन किस प्रकार किया है ?

उत्तर :- इब्नबतूता ने नारियल को मानव सिर जैसा गिरीदार फल बताया है। उसके अनुसार नारियल पेड़ हु-बहू खजूर के पेड़ जैसा दिखता है। इनमें कोई फर्क नहीं है एक से काष्ठफल प्राप्त होता है तथा दूसरे से खजूर। नारियल के पेड़ का फल मानव के सिर से मेल खाता है क्योंकि इसमें भी मानो दो आंखें और एक मुंह और अंदर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखाई देता है।


इब्नबतूता के अनुसार, पान एक ऐसा पेड़ है जिसे अंगूर- लता की तरह ही उगाया जाता है। पान का कोई फल नहीं होता। उसे तो सिर्फ उसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है। इसे इस्तेमाल करने की विधि यह है इसे खाने से पूर्व सुपारी ली जाती है।


प्रश्न 22. इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।

उत्तर :-
1. इब्नबतूता के अनुसार, बाजारों में दास किसी भी अन्य वस्तु की तरह सरेआम बेचे जाते थे ।
2. ये नियमित रूप से भेंट स्वरूप दिए जाते थे।
3.जब इब्नबतूता सिंध पहुंचा तो उसने सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक को भेंट के लिए भेंट स्वरूप घोड़े, ऊंट    और दास खरीदें।
4. जब वह मुल्तान पहुंचा तो उसने गवर्नर को किशमिश, बादाम के साथ एक दास और घोड़ा भेंट के रूप में   दिया।
5. इब्नबतूता बताता है कि मोहम्मद-बिन-तुगलक नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक के प्रवचन से इतना आनंदित हुआ कि उसे एक लाख टके ( मुद्रा ) तथा 200 दास दे दिए।
6. इब्नबतूता के वृतांत से प्रतीत होता है कि दासों में बहुत विभेद था।
7. सुल्तान की सेवा में कुछ कार्यरत दासियां संगीत और गायन में निपुण थी।
8. सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
9. दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था।
10. इब्नबतूता ने इनकी सेवाओं को पालकी पर डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने में खासतौर पर अपरिहार्य पाया ।
11 .दासों की कीमत खासतौर पर उन दासियों की, जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए थी बहुत कम थी।

प्रश्न 23. सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा ?

उत्तर :-
सती प्रथा के मार्मिक दृश्य ने बर्नियर का ध्यान आकर्षित किया। लाहौर में एक बहुत सुंदर अल्प वयस्क विधवा जिसकी आयु 12 वर्ष से अधिक नहीं थी उसे बर्नियर ने सती होते हुए देखा। बर्नियर के अनुसार उस भयानक नरक की ओर जाते हुए वह छोटी सी असहाय बच्ची जीवित से अधिक मृत प्रतीत हो रही थी। उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता। वह बच्ची कांपते हुए बुरी तरह रो रही थी। लेकिन तीन-चार ब्राह्मण, एक बूढ़ी औरत, जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था की सहायता से उस पीड़िता को जबरन घातक स्थल की ओर ले गए। उसे लकड़ियों पर बैठा दिया गया। तत्पश्चात उस बच्ची के हाथ और पैर बांध दिए ताकि वह भाग न जाए। इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिंदा जला दिया गया। बर्नियरअपनी भावनाओं को दबाने में और उनके कोलाहलपूर्ण तथा व्यर्थ के क्रोध को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था। हालांकि कुछ महिलाएं प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थी और अन्य को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।

प्रश्न 24. क्या समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्नबतूता का वृतांत सहायक है ?

उत्तर :-
(1) इब्नबतूता ने भारतीय उपमहाद्वीप के शहरों को व्यापक अवसरों से भरपूर पाया। यह अवसर उन लोगों के लिए थे जिनके पास इच्छा शक्ति, साधन एवं कौशल था। यह शहर घनी जनसंख्या वाले तथा समृद्ध थे। कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों से होने वाले विनाश को छोड़कर।

(2) इब्नबतूता के वृतांत से ऐसा लगता है कि अधिकतर शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें चमक-दमक वाले रंगीन बाजार थे जो विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से सटे रहते थे।

(3) इब्नबतूता दिल्ली को एक बड़ा शहर, विशाल जनसंख्या वाला तथा भारत में सबसे बड़ा कहता है। दौलताबाद भी कमतर नहीं था और आकृति में दिल्ली को चुनौती देता था।

(4) बाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थल नहीं थे बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। अधिकतर बाजारों में एक मस्जिद और एक मंदिर होता था। कुछ बाजारों में नृतकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी विद्यमान थे।

(5) इब्नबतूता शहरों की समृद्धि का वर्णन करने में अधिक रुचि नहीं रखता था परंतु इतिहासकारों ने उसके वृतांत का प्रयोग यह तर्क देने के लिए किया है कि शहरों की समृद्धि का आधार गांव की कृषि व्यवस्था थी।

(6) इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के इतना अधिक उत्पादन होने का कारण मिट्टी को उपजाऊपन था । अतः किसानों के लिए वर्ष में दो फसलें उगाना आसान था।



Saturday, April 4, 2020

अध्याय 4 - विचारक, विश्वास और इमारतें (ई. पू.600 से 600 ई. तक)

प्रश्न 1 सांची का स्तूप कहां स्थित है ? इसकी कोई एक विशेषता बताइए।

उत्तर - सांची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व में स्थित सांची कनखेड़ा नामक एक गांव में स्थित है। यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है और एक मुकुट के समान दिखाई देता है।

प्रश्न 2. प्राचीन भारत में किन तीन धर्मों का उत्थान हुआ ?

उत्तर - हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म।

प्रश्न 3. छठी शताब्दी ईसा पूर्व से भारत में जैन और बौद्ध धर्म के उदय के कारण बताइए।

उत्तर -
1. वैदिक धर्म की जटिलता
2. यज्ञों का अधिक खर्चीला होना।

प्रश्न 4. त्रिपिटक क्या हैं ? संख्या में कितने है ?

उत्तर - पाली भाषा में बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन संग्रह त्रिपिटक कहलाया। इसका शाब्दिक अर्थ है तीन टोकरियां।
1. विनय पिटक में संघ बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों को बनाया गया।
2. बुद्ध की शिक्षाएं सुत पिटक में रखी गई ।
3. दर्शन से संबंधित विषय अभिधम्म पिटक में आए।

प्रश्न 5. नियती वादी और भौतिक वादी विचारकों की मुख्य विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर -
1. नीयति वादी भाग्यवादी थे। ऐसे लोग जो विश्वास करते थे कि सब कुछ पहले से भाग्य द्वारा निर्धारित है।

2. भौतिकवादी सांसारिक सुखों का भरपूर आनंद लेने में विश्वास करते थे।

प्रश्न 6. चैत्य से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - बौद्ध भिक्षु का पूजा स्थल।

प्रश्न 7. विहार किसे कहते हैं ?

उत्तर - बौद्ध भिक्षुओं के रहने का स्थान।

प्रश्न 8. स्तूप से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - महात्मा बुध और बौद्ध भिक्षुओं के अस्थि अवशेषों पर बना स्मारक।

प्रश्न 9. जेम्स फर्गुसन किस प्रकार सांची को समझने में भूल कर गए ?

उत्तर, - बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञता के कारण केवल मूर्तियों के अध्ययन से सांची को वृक्ष तथा सर्प पूजा का केंद्र मान लिया गया।

प्रश्न 10. मध्यप्रदेश में भोपाल के पास प्रसिद्ध स्तूप कौन सा है ?
उत्तर - सांची का स्तूप।

प्रश्न 11 ईसा की प्रथम शताब्दी के बाद बौद्ध धर्म बंट गया - हीनयान और महायान में ‌।

प्रश्न 12. त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है - तीन टोकरिया।

प्रश्न 13. बुद्धचरित के रचयिता थे - अश्वघोष।

प्रश्न 14. बुद्ध के उपदेश शामिल हैं - सुत पिटक में।

प्रश्न 15. कोलकाता में इंडियन म्यूजियम की स्थापना

हुई - 1814 में।

प्रश्न 16. सांची को विश्वकला दाय स्थान घोषित किया गया - 1989 में।

प्रश्न 17. उचित क्रम चुनिए-

1. राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली की नींव रखी गई।
2. इंडियन म्यूजियम कोलकाता की स्थापना।
3. कनिंघम ने भिलसा टॉप्स किताब लिखी।
4. गवर्नमेंट म्यूजियम मद्रास की स्थापना।

उत्तर. 2, 4 ,3, 1

प्रश्न 18. युग्म सुमेलित कीजिए-

उत्तर -
1. वैदिक देवता - अग्नि, सोम, इंद्र
2. चिंतन परंपराएं - 64
3. स्तूप - हर्मिका
4. जैन धर्म - तीर्थंकर

प्रश्न19. युग्म सुमेलित कीजिए-
उत्तर -
1. जैन धर्म - वर्धमान महावीर
2. बौद्ध धर्म - महात्मा बुद्ध
3. प्रथम तीर्थंकर - ऋषभ नाथ
4. त्रिपिटक - बौद्ध ग्रंथ

प्रश्न 20. हीनयान और महायान में क्या अंतर है ?

उत्तर - बौद्ध धर्म में चिंतन की नई परंपरा को महायान की संज्ञा दी गई है।

महायान के अनुयाई दूसरी बौद्ध परंपराओं के समर्थकों को हीनयान कहते थे किंतु पुरातन परंपरा के अनुयाई स्वयं को थेरवादी कहते थे।
1. महायान बौद्ध धर्म का नया रूप था जबकि हीनयान बौद्ध धर्म का मूल रूप था।
2. हीनयान में बुद्ध की मूर्तियों की पूजा नहीं की जाती थी परंतु महायान संप्रदाय में बुद्ध की मूर्तियों की पूजा की जाने लगी थी।

प्रश्न 21. भोपाल की बेगमों ने सांची के स्तूप के संरक्षण में क्या योगदान दिया ?

उत्तर - सांची के स्तूप के अवशेषों के सरंक्षण में भोपाल की बेगमों का निम्नलिखित योगदान रहा -

1. पहले फ्रांसीसियों ने और बाद में अंग्रेजों ने सांची के पूर्वी तोरण द्वार को अपने अपने देश में ले जाने की कोशिश की परंतु भोपाल की बेगमों ने उन्हें स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियों से संतुष्ट कर दिया।

2. शाहजहां बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहां बेगम ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान दिया।

3. सुल्तान जहां बेगम ने वहां एक संग्रहालय तथा अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया

4. जान मार्शल ने सांची पर लिखे अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ सुल्तान जहां को समर्पित किए। इनके प्रकाशन पर बेगम ने धन लगाया।

5. बेगमों द्वारा समय पर लिए गए विवेकपूर्ण निर्णय ने सांची के स्तूप को उजड़ने से बचा लिया। यदि ऐसा न होता तो इसकी दशा भी अमरावती के स्तूप जैसी होती।

6. सांची का स्तूप बौद्ध धर्म का सबसे अधिक महत्वपूर्ण केंद्र है। इसने आरंभिक बौद्ध धर्म को समझने में बहुत अधिक सहायता दी ह

प्रश्न 22 स्तूप की संरचना

उत्तर :- स्तूप को संस्कृत में टीला कहा जाता है। इसका जन्म एक गोलार्द्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे कुछ समय बाद अंड कहा गया। धीरे-धीरे इसकी संरचना अधिक जटिल हो गई जिसमें अनेक चौकोर तथा गोल आकारों का संतुलन बनाया गया । अंड के ऊपर एक हार्मिका होती थी। यह ढांचा छज्जों जैसा होता था एवं यह देवताओं के घर का प्रतीक था। हर्मीका से एक मस्तूल निकलता था जो यष्टि कहलाता था जिस पर एक छतरी लगी होती थी। टीले के चारों तरफ एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थान को सामान्य दुनिया से पृथक करती थी।

प्रश्न 23. अमरावती और सांची के स्तूप की नियति

उत्तर - अमरावती के स्तूप की खोज अचानक हुई। 1796 में एक स्थानीय राजा मंदिर बनाना चाहता था। अचानक उसे अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गए। उसने उसके पत्थरों का प्रयोग करने का निश्चय किया। उसे ऐसा लगा कि इस छोटी सी पहाड़ी में संभवत कोई खजाना छुपा है।

कुछ वर्षों के बाद कालीन मैकेंजी नामक एकअंग्रेज अधिकारी इस प्रदेश से गुजरा। उसे यहां कई मूर्तियां मिली। उसने उनका विस्तृत चित्रांकन किया। परंतु उसकी रिपोर्ट कभी छपी नहीं।

1854 में गुंटुर (आंध्र प्रदेश )के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। वह यहां से कई मूर्तियां और उत्कीर्ण पत्थर मद्रास ले गया। उसी के नाम पर इन पत्थरों को एलियट संगमरमर कहा जाता है। उसने स्तूप के पश्चिमी तोरण द्वार को खोज निकाला। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अमरावती का स्तूप बोद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप था।

1850 के दशक में ही अमरावती में उत्कीर्ण पत्थर अलग-अलग स्थानों पर ले जाए गए। कुछ पत्थर कोलकाता एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल में पहुंचे तो कुछ मद्रास में। कुछ पत्थर लंदन तक ले जाए गए। अमरावती की मूर्तियां अंग्रेज अधिकारियों के बागों में शोभा बन गई । वास्तव में इस प्रदेश का प्रत्येक नया अधिकारी यह कहकर कुछ मूर्तियां उठा ले जाता था कि उसके पहले के अधिकारियों ने भी ऐसा किया था।

अमरावती की खोज संभवत कुछ पहले हुई थी। उस समय तक विद्वान इस बात के महत्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज स्थल पर ही संरक्षित करना कितना आवश्यक होता है।

सांची की खोज 1818 में हुई थी । उस समय तक भी इसके तीन तोरण द्वार खड़े थे। चौथा द्वार वहीं पर गिरा हुआ था। टीला अभी भी अच्छी दशा में था।

भोपाल की बेगमों के प्रयास से सांची का स्तूप तो बच गया जबकि अमरावती नष्ट हो गया।

प्रश्न24. महात्मा बुद्ध कौन थे ? उनकी शिक्षाओं का वर्णन करो।

उत्तर - महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे । उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था । उनका जन्म कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी ग्राम में हुआ। जीवन के कटु सत्यों से परे महल की चारदीवारी के भीतर सब सुखों के बीच बड़ा किया गया। एक दिन उन्होंने अपने रथकार को शहर घुमाने के लिए राजी कर लिया । बाहरी दुनिया की उनकी प्रथम यात्रा काफी दुखदायक रही । एक बूढ़े व्यक्ति को, एक बीमार को तथा एक लाश को देखकर उन्हें बहुत सदमा पहुंचा। अंत में एक सन्यासी को देखकर उनका मन विरक्त हो गया और ज्ञान प्राप्ति के लिए सत्य की खोज में निकल पड़े।

बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का आधार चार मूल सिद्धांतों पर आधारित है :-
1. संसार दुखों का घर है ।
2. इन दुखों का कारण तृष्णा व लालसा है ।
3.अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही दुखों से छुटकारा मिलता है और मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है ।
4. तृष्णा के दमन के लिए मनुष्य को अष्ट मार्ग पर चलना चाहिए।

अष्टमार्ग निम्न है:- 1. सम्यक समाधि, 2. शुद्ध कथन 3.शुद्ध आचरण, 4. शुद्ध दृष्टि, 5. शुद्ध विश्वास, 6. शुद्ध संकल्प, 7. शुद्ध जीवन, 8. शुद्ध विचार।


प्रश्न 25. जैन धर्म :- उत्पत्ति, शिक्षाएं।

उत्तर :- जैनियों के मूल सिद्धांत छठी शताब्दी ईसा पूर्व में वर्धमान महावीर के जन्म से पहले ही उत्तर भारत में प्रचलित थे। जैन परंपरा के अनुसार महावीर से पहले 23 शिक्षक हो चुके थे जिन्हें तीर्थंकर कहा जाता है। तीर्थंकर का अर्थ है - वे महापुरुष जो लोगों को जीवन को नदी के पार पहुंचाते हैं । महावीर ने अपने से पहले के तीर्थंकरों की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया।

जैन धर्म की शिक्षाएं :-

1. जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सारा संसार सजीव है। इसके अनुसार पत्थर,चट्टान और जल में भी जीवन होता है।

2. जीवों के प्रति अहिंसा जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है। इसके अनुसार जीवों विशेषकर मनुष्य,जानवरों, पेड़-पौधों और कीड़े -मकोड़ों को नहीं मारना चाहिए । जैन मत के अहिंसा के सिद्धांत ने संपूर्ण भारतीय चिंतन परंपरा को प्रभावित किया है।

3. जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है । कर्म चक्र से मुक्ति पाने के लिए त्याग और तपस्या की जरूरत होती है। यह संसार के त्याग से ही संभव हो पाता है । इसलिए मुक्ति के लिए संसार का त्याग करके विहारों में निवास करना चाहिए।

4. जैन साधु और साध्वी पांच व्रत करते थे -(सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य) 1. हत्या न करना, 2. चोरी न करना, 3. झूठ न बोलना, 4. ब्रह्मचर्य का पालन करना तथा, 5. धन संग्रह न करना।

प्रश्न 26. सांची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहां तक सहायता मिलती है ?

उत्तर :- सांची की मूर्तिकला को समझने के लिए बौद्ध साहित्य से व्यापक सहायता मिलती है । सांची का स्तूप मध्य प्रदेश में भोपाल से 20 मील दूर उत्तर पूर्व में कनखेड़ा की पहाड़ियों की तलहटी में बसे एक गांव में स्थित है। अशोक के काल में इसे ईंटों से बनवाया गया था । शुंगकाल में उस पर पाषाण की शिलाओं का आवरण लगाया गया। सांची की मूर्तिकला की गहराई में अध्ययन से पता चलता है कि यह दृश्य वंषान्तर जातक से लिया गया है जिसमें एक दानी राजकुमार एक ब्राह्मण को अपना सब कुछ सौंप कर पत्नी और बच्चों सहित जंगल में रहने चला जाता है।

बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ही बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी । मूर्तिकारों ने बुद्ध को उपस्थित प्रतीकों द्वारा दर्शाया गया है। बुध द्वारा सारनाथ में दिए पहले उपदेश को चक्र द्वारा दर्शाया गया हैं। वहां पेड़, एक पेड़ न होकर बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतीक है।

सांची में जातकों से लिए गए हाथी, बंदर, गाय,बैल आदि के चित्र भी मिले हैं। जानवरों को मनुष्य के गुणों के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।

शाल भंजिका की मूर्ति से बौद्ध धर्म की समृद्धि, धारणाओं और विश्वासों का पता चलता था । सांची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक चिन्ह इन्हीं परंपराओं से उभरे हैं।







CBSE PAPER & ANSWER KEY 19-20