Saturday, April 4, 2020

अध्याय 4 - विचारक, विश्वास और इमारतें (ई. पू.600 से 600 ई. तक)

प्रश्न 1 सांची का स्तूप कहां स्थित है ? इसकी कोई एक विशेषता बताइए।

उत्तर - सांची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व में स्थित सांची कनखेड़ा नामक एक गांव में स्थित है। यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है और एक मुकुट के समान दिखाई देता है।

प्रश्न 2. प्राचीन भारत में किन तीन धर्मों का उत्थान हुआ ?

उत्तर - हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म।

प्रश्न 3. छठी शताब्दी ईसा पूर्व से भारत में जैन और बौद्ध धर्म के उदय के कारण बताइए।

उत्तर -
1. वैदिक धर्म की जटिलता
2. यज्ञों का अधिक खर्चीला होना।

प्रश्न 4. त्रिपिटक क्या हैं ? संख्या में कितने है ?

उत्तर - पाली भाषा में बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन संग्रह त्रिपिटक कहलाया। इसका शाब्दिक अर्थ है तीन टोकरियां।
1. विनय पिटक में संघ बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों को बनाया गया।
2. बुद्ध की शिक्षाएं सुत पिटक में रखी गई ।
3. दर्शन से संबंधित विषय अभिधम्म पिटक में आए।

प्रश्न 5. नियती वादी और भौतिक वादी विचारकों की मुख्य विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर -
1. नीयति वादी भाग्यवादी थे। ऐसे लोग जो विश्वास करते थे कि सब कुछ पहले से भाग्य द्वारा निर्धारित है।

2. भौतिकवादी सांसारिक सुखों का भरपूर आनंद लेने में विश्वास करते थे।

प्रश्न 6. चैत्य से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - बौद्ध भिक्षु का पूजा स्थल।

प्रश्न 7. विहार किसे कहते हैं ?

उत्तर - बौद्ध भिक्षुओं के रहने का स्थान।

प्रश्न 8. स्तूप से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - महात्मा बुध और बौद्ध भिक्षुओं के अस्थि अवशेषों पर बना स्मारक।

प्रश्न 9. जेम्स फर्गुसन किस प्रकार सांची को समझने में भूल कर गए ?

उत्तर, - बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञता के कारण केवल मूर्तियों के अध्ययन से सांची को वृक्ष तथा सर्प पूजा का केंद्र मान लिया गया।

प्रश्न 10. मध्यप्रदेश में भोपाल के पास प्रसिद्ध स्तूप कौन सा है ?
उत्तर - सांची का स्तूप।

प्रश्न 11 ईसा की प्रथम शताब्दी के बाद बौद्ध धर्म बंट गया - हीनयान और महायान में ‌।

प्रश्न 12. त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है - तीन टोकरिया।

प्रश्न 13. बुद्धचरित के रचयिता थे - अश्वघोष।

प्रश्न 14. बुद्ध के उपदेश शामिल हैं - सुत पिटक में।

प्रश्न 15. कोलकाता में इंडियन म्यूजियम की स्थापना

हुई - 1814 में।

प्रश्न 16. सांची को विश्वकला दाय स्थान घोषित किया गया - 1989 में।

प्रश्न 17. उचित क्रम चुनिए-

1. राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली की नींव रखी गई।
2. इंडियन म्यूजियम कोलकाता की स्थापना।
3. कनिंघम ने भिलसा टॉप्स किताब लिखी।
4. गवर्नमेंट म्यूजियम मद्रास की स्थापना।

उत्तर. 2, 4 ,3, 1

प्रश्न 18. युग्म सुमेलित कीजिए-

उत्तर -
1. वैदिक देवता - अग्नि, सोम, इंद्र
2. चिंतन परंपराएं - 64
3. स्तूप - हर्मिका
4. जैन धर्म - तीर्थंकर

प्रश्न19. युग्म सुमेलित कीजिए-
उत्तर -
1. जैन धर्म - वर्धमान महावीर
2. बौद्ध धर्म - महात्मा बुद्ध
3. प्रथम तीर्थंकर - ऋषभ नाथ
4. त्रिपिटक - बौद्ध ग्रंथ

प्रश्न 20. हीनयान और महायान में क्या अंतर है ?

उत्तर - बौद्ध धर्म में चिंतन की नई परंपरा को महायान की संज्ञा दी गई है।

महायान के अनुयाई दूसरी बौद्ध परंपराओं के समर्थकों को हीनयान कहते थे किंतु पुरातन परंपरा के अनुयाई स्वयं को थेरवादी कहते थे।
1. महायान बौद्ध धर्म का नया रूप था जबकि हीनयान बौद्ध धर्म का मूल रूप था।
2. हीनयान में बुद्ध की मूर्तियों की पूजा नहीं की जाती थी परंतु महायान संप्रदाय में बुद्ध की मूर्तियों की पूजा की जाने लगी थी।

प्रश्न 21. भोपाल की बेगमों ने सांची के स्तूप के संरक्षण में क्या योगदान दिया ?

उत्तर - सांची के स्तूप के अवशेषों के सरंक्षण में भोपाल की बेगमों का निम्नलिखित योगदान रहा -

1. पहले फ्रांसीसियों ने और बाद में अंग्रेजों ने सांची के पूर्वी तोरण द्वार को अपने अपने देश में ले जाने की कोशिश की परंतु भोपाल की बेगमों ने उन्हें स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियों से संतुष्ट कर दिया।

2. शाहजहां बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहां बेगम ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान दिया।

3. सुल्तान जहां बेगम ने वहां एक संग्रहालय तथा अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया

4. जान मार्शल ने सांची पर लिखे अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ सुल्तान जहां को समर्पित किए। इनके प्रकाशन पर बेगम ने धन लगाया।

5. बेगमों द्वारा समय पर लिए गए विवेकपूर्ण निर्णय ने सांची के स्तूप को उजड़ने से बचा लिया। यदि ऐसा न होता तो इसकी दशा भी अमरावती के स्तूप जैसी होती।

6. सांची का स्तूप बौद्ध धर्म का सबसे अधिक महत्वपूर्ण केंद्र है। इसने आरंभिक बौद्ध धर्म को समझने में बहुत अधिक सहायता दी ह

प्रश्न 22 स्तूप की संरचना

उत्तर :- स्तूप को संस्कृत में टीला कहा जाता है। इसका जन्म एक गोलार्द्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे कुछ समय बाद अंड कहा गया। धीरे-धीरे इसकी संरचना अधिक जटिल हो गई जिसमें अनेक चौकोर तथा गोल आकारों का संतुलन बनाया गया । अंड के ऊपर एक हार्मिका होती थी। यह ढांचा छज्जों जैसा होता था एवं यह देवताओं के घर का प्रतीक था। हर्मीका से एक मस्तूल निकलता था जो यष्टि कहलाता था जिस पर एक छतरी लगी होती थी। टीले के चारों तरफ एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थान को सामान्य दुनिया से पृथक करती थी।

प्रश्न 23. अमरावती और सांची के स्तूप की नियति

उत्तर - अमरावती के स्तूप की खोज अचानक हुई। 1796 में एक स्थानीय राजा मंदिर बनाना चाहता था। अचानक उसे अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गए। उसने उसके पत्थरों का प्रयोग करने का निश्चय किया। उसे ऐसा लगा कि इस छोटी सी पहाड़ी में संभवत कोई खजाना छुपा है।

कुछ वर्षों के बाद कालीन मैकेंजी नामक एकअंग्रेज अधिकारी इस प्रदेश से गुजरा। उसे यहां कई मूर्तियां मिली। उसने उनका विस्तृत चित्रांकन किया। परंतु उसकी रिपोर्ट कभी छपी नहीं।

1854 में गुंटुर (आंध्र प्रदेश )के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। वह यहां से कई मूर्तियां और उत्कीर्ण पत्थर मद्रास ले गया। उसी के नाम पर इन पत्थरों को एलियट संगमरमर कहा जाता है। उसने स्तूप के पश्चिमी तोरण द्वार को खोज निकाला। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अमरावती का स्तूप बोद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप था।

1850 के दशक में ही अमरावती में उत्कीर्ण पत्थर अलग-अलग स्थानों पर ले जाए गए। कुछ पत्थर कोलकाता एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल में पहुंचे तो कुछ मद्रास में। कुछ पत्थर लंदन तक ले जाए गए। अमरावती की मूर्तियां अंग्रेज अधिकारियों के बागों में शोभा बन गई । वास्तव में इस प्रदेश का प्रत्येक नया अधिकारी यह कहकर कुछ मूर्तियां उठा ले जाता था कि उसके पहले के अधिकारियों ने भी ऐसा किया था।

अमरावती की खोज संभवत कुछ पहले हुई थी। उस समय तक विद्वान इस बात के महत्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज स्थल पर ही संरक्षित करना कितना आवश्यक होता है।

सांची की खोज 1818 में हुई थी । उस समय तक भी इसके तीन तोरण द्वार खड़े थे। चौथा द्वार वहीं पर गिरा हुआ था। टीला अभी भी अच्छी दशा में था।

भोपाल की बेगमों के प्रयास से सांची का स्तूप तो बच गया जबकि अमरावती नष्ट हो गया।

प्रश्न24. महात्मा बुद्ध कौन थे ? उनकी शिक्षाओं का वर्णन करो।

उत्तर - महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे । उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था । उनका जन्म कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी ग्राम में हुआ। जीवन के कटु सत्यों से परे महल की चारदीवारी के भीतर सब सुखों के बीच बड़ा किया गया। एक दिन उन्होंने अपने रथकार को शहर घुमाने के लिए राजी कर लिया । बाहरी दुनिया की उनकी प्रथम यात्रा काफी दुखदायक रही । एक बूढ़े व्यक्ति को, एक बीमार को तथा एक लाश को देखकर उन्हें बहुत सदमा पहुंचा। अंत में एक सन्यासी को देखकर उनका मन विरक्त हो गया और ज्ञान प्राप्ति के लिए सत्य की खोज में निकल पड़े।

बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का आधार चार मूल सिद्धांतों पर आधारित है :-
1. संसार दुखों का घर है ।
2. इन दुखों का कारण तृष्णा व लालसा है ।
3.अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही दुखों से छुटकारा मिलता है और मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है ।
4. तृष्णा के दमन के लिए मनुष्य को अष्ट मार्ग पर चलना चाहिए।

अष्टमार्ग निम्न है:- 1. सम्यक समाधि, 2. शुद्ध कथन 3.शुद्ध आचरण, 4. शुद्ध दृष्टि, 5. शुद्ध विश्वास, 6. शुद्ध संकल्प, 7. शुद्ध जीवन, 8. शुद्ध विचार।


प्रश्न 25. जैन धर्म :- उत्पत्ति, शिक्षाएं।

उत्तर :- जैनियों के मूल सिद्धांत छठी शताब्दी ईसा पूर्व में वर्धमान महावीर के जन्म से पहले ही उत्तर भारत में प्रचलित थे। जैन परंपरा के अनुसार महावीर से पहले 23 शिक्षक हो चुके थे जिन्हें तीर्थंकर कहा जाता है। तीर्थंकर का अर्थ है - वे महापुरुष जो लोगों को जीवन को नदी के पार पहुंचाते हैं । महावीर ने अपने से पहले के तीर्थंकरों की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया।

जैन धर्म की शिक्षाएं :-

1. जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सारा संसार सजीव है। इसके अनुसार पत्थर,चट्टान और जल में भी जीवन होता है।

2. जीवों के प्रति अहिंसा जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है। इसके अनुसार जीवों विशेषकर मनुष्य,जानवरों, पेड़-पौधों और कीड़े -मकोड़ों को नहीं मारना चाहिए । जैन मत के अहिंसा के सिद्धांत ने संपूर्ण भारतीय चिंतन परंपरा को प्रभावित किया है।

3. जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है । कर्म चक्र से मुक्ति पाने के लिए त्याग और तपस्या की जरूरत होती है। यह संसार के त्याग से ही संभव हो पाता है । इसलिए मुक्ति के लिए संसार का त्याग करके विहारों में निवास करना चाहिए।

4. जैन साधु और साध्वी पांच व्रत करते थे -(सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य) 1. हत्या न करना, 2. चोरी न करना, 3. झूठ न बोलना, 4. ब्रह्मचर्य का पालन करना तथा, 5. धन संग्रह न करना।

प्रश्न 26. सांची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहां तक सहायता मिलती है ?

उत्तर :- सांची की मूर्तिकला को समझने के लिए बौद्ध साहित्य से व्यापक सहायता मिलती है । सांची का स्तूप मध्य प्रदेश में भोपाल से 20 मील दूर उत्तर पूर्व में कनखेड़ा की पहाड़ियों की तलहटी में बसे एक गांव में स्थित है। अशोक के काल में इसे ईंटों से बनवाया गया था । शुंगकाल में उस पर पाषाण की शिलाओं का आवरण लगाया गया। सांची की मूर्तिकला की गहराई में अध्ययन से पता चलता है कि यह दृश्य वंषान्तर जातक से लिया गया है जिसमें एक दानी राजकुमार एक ब्राह्मण को अपना सब कुछ सौंप कर पत्नी और बच्चों सहित जंगल में रहने चला जाता है।

बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ही बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी । मूर्तिकारों ने बुद्ध को उपस्थित प्रतीकों द्वारा दर्शाया गया है। बुध द्वारा सारनाथ में दिए पहले उपदेश को चक्र द्वारा दर्शाया गया हैं। वहां पेड़, एक पेड़ न होकर बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतीक है।

सांची में जातकों से लिए गए हाथी, बंदर, गाय,बैल आदि के चित्र भी मिले हैं। जानवरों को मनुष्य के गुणों के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।

शाल भंजिका की मूर्ति से बौद्ध धर्म की समृद्धि, धारणाओं और विश्वासों का पता चलता था । सांची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक चिन्ह इन्हीं परंपराओं से उभरे हैं।







3 comments:

  1. Very nice note's sir ji. Thank you show much

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  2. Very informative notes sir. Sir kya lesson 7 ke bad ke bhi notes h.

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  3. Very useful sir support material ke sarre ques daliye plss 🙏🙏🙏

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